Sunday, April 20, 2008

अष्टावक्र गीता

कुछ दिन पहले अष्टावक्र गीता पढ़ रहा था. अष्टावक्र गीता अष्टावक्र और मिथिला राजा जनक के बीच संवाद है. अष्टावक्र राजा जनक को समझाते हें. मिथिला की धरती पर राजा जनक जैसा आदमी आज तक पैदा नही हुआ. मिथिला मे बहोत लोगों का नाम है - पर उनका सारा नाम अपार्मर्थिक है. चाहे वो गोनु झा हों, या विद्यापति हों या कोई और हो.

अष्टावक्र के वचनों से ऐसा लगता है की उनके जैसा ज्ञानी आज तक हुआ ही नही और न कभी होगा. श्री कृष्ण भी इस तरह से नही समझाते जैसा की अष्टावक्र समझाते हें. पात्रता पर निर्भर करता है. राजा जनक की पात्रता, अर्जुन से जादा रही होगी. इसलिए हो सकता है की श्री कृष्ण को अर्जुन को समझाने के लिए अपने वचनों को थोरा बदलना परा हो. श्री कृष्ण को सत्य की उतनी चिंता नही है जितना की अर्जुन के समझने की चिंता है। अष्टावक्र किसी की चिंता नही करते वे सत्य की भी चिंता नही करते. इसलिए जो श्री कृष्ण ने अंत मे कहा वो अष्टावक्र ने पहले १-२ श्लोक मे ही कह दिया. मैंने पूरी अष्टावक्र गीता नही पढी. ये कोई उपन्यास नही है, जो पढ़ते जा रहे हें. और जैसे ही एक उपन्यास खत्म हो, दूसरा पढ़ना शुरू कर दें. अगर तुम पहले ही श्लोक मे बात समझ गए टू फिर दूसरे श्लोक की कोई आवश्यकता नही है. अगर तुम पहले से ही समझे हुए हो टू फिर अष्टावक्र गीता की भी कोई आवश्यकता नही है. तुम जहाँ समझो वहीं पर रुक जाओ. अगर तुम नही रुके, फिर टू अनंत जीवन है, उपन्यास पढ़ते जाओ।

अष्टावक्र बहोt तेजी से सत्य को प्रकट करते हें. पतंजलि योग मे थोरा समय लगता है. वहाँ ८ चरण हें. यम्, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। पतंजलि सत्य को श्रृंखला मे बाँध देते हैं. अष्टावक्र सत्य को तुरंत प्रकट करते हें. क्योंकि सत्य हमशा से है. पतंजलि समाधि पर अंत करते हें. अष्टावक्र समाधि से शुरू करते हीं और वहीं अंत करते हें. पतंजलि जहाँ समाप्त करते हें, अष्टावक्र वहीं से शुरू करते हें और वहीं पर समाप्त करते हें. उनका कहना है की सत्य करने से नही मिलता है. सत्य तुम्हें मिले ही हुआ है. करने से टू तुम्हारी ही अभिव्यक्ति प्रकट होती है. तुम जैसा करते हो वही प्रकट हो जाता है. सत्य पीछे छूट जाता है। करने से सत्य नही मिलता है. किसी को नही मिला. बुद्ध को भी नही मिला. जब बुद्ध ne सब करना छोर दिया तभी सत्य मिला. क्योंकि करते ही अहंकार सामने आ जाता है. अहंकार हटे तभी सत्य प्रकट होता है। रत्ती भर भी अहंकार नही होना चाहिए। कठिन है थोरा कठिन है क्योंकि हमने जो शिक्षा प्राप्त की उसने अहंकार के अलावा कुछ नही सिखाया. किताबी ज्ञान से क्या होगा? किताबी ज्ञान मूर्खता का ही एक रूप है. और भी विस्तृत रूप. मूर्ख लोग ही जादा किताब -पोथी पढ़ते हैं. ज्ञानी लोग किताब नही पढ़ते hain सत्य किताबों मे नही छुपा है, सत्य तुम्हारे अन्दर है। इस से अच्छे टू वो हें ओ पढे लिखे न हों . उनका ह्रदय निर्मल होता है .पढी लिखे आदमी का ह्रदय साफ नही होता है। निरक्षर या कम पढे लिखे लोगों kaa ह्रदय साफ होता है। वहाँ सत्य के प्रकट होने की थोरी सम्भाना है। इसलिए टू जीसस को सत्य प्रकट हुआ। कबीर को सत्य प्रकट हुआ। मैं ये नही कह रहा की पढे लिखे लोगों को सत्य उपलब्ध नही होता hai। हो सकता है, पर थोरा मुश्किल है क्योंकि तुमने किताब की भाषा सिख LI। तुम सत्य काम भी विश्लेषण करने लगोगे । फिर तुम पूछोगे की सत्य का उपयोग क्या है ? सत्य से job मिलेगा? यह पूछते ही सत्य गायब हो जाएगा। सत्य अहंकार से भी सूक्ष्म है इसलिए टू अहंकार उसे achachhaadit कर paata है।

2 comments:

Anonymous said...

Maine yeh abtak nahi padhi hai. Lekin aapne jo post mein likha hai that is very true. Lekin ab na to wo kabir milenge na hi jessus. Kabir ke dohe ko padhne se aisa lagta hai ki unhone jo bhi likha hai wo sat partishat sahi likha hai. Unke ek ek dohe mein katu satya chupa hai. mujhe unke dohe se kafi lagav hai aur i love to hear his words everyday.

Lekin agar ham practically dekhen to sbahi aaj job ke peeche bhag rahe hein...paise kamane ki hod lagi hui hai. aur shayad yahin tak hamari aawashyaktayen rah gayi hai jise sirf paison ke bal per log pane chahte hein. Isliye log aaj education+steady= money ka funda follow kar rahe hein. I may be wrong but this is what i see these days.

Unknown said...

What is Astavakra,I have no idea about Astavakra, how it helps to enlighten truth, is it an epic like Gita or Ramayan? I would like to know more about Astavakra, can u plz throw some light on it.