Friday, April 10, 2009

Ego

I want to scribble on Ego for sometime. I forgot the definition of Ego taught in psychology class. What I undetstand Ego is as follows...

Whenever, you identify yourself with something. That identity will be ego, will cause ego. For example, I am an engineer. But essentially, I am not an engineer. Essentially, I am I. Just an existence, a being. But we keep on identifying. Whole life we identify our self with what we are not. This is where ego pops up. And sometimes ego is very subtle. If someone is polite, you can say he doesn't have ego. But that's not always right. Even a polite people can have ego. They have ego of politeness. A good person can have ego of goodness. I have seen such people. And sometimes, their ego of politness is even greater than ego of someone's rusty nature. At even more abstract level, you can say ego is negative truth. Negativity of truth is ego. Wherever there is no truth, ego persists. Because only false identity remains in that case.

Tuesday, April 7, 2009

बुद्धत्व

अगर हमें बुद्धत्व मिले तो ये समझाना की सारा जीवन व्यर्थ हुआहमने बहोत काम किया और अगर आत्मज्ञान मिले तो फिर सारा जीवन व्यर्थ हैमिलने की बात तो तब जब हमने ये मान लिया की हमने सत्य को खो दिया हैऐसा हो सकता है की हमने सत्य को कभी खोया ही हो और बेकार मे ढूंढ रहे होंये ज्ञान की बात हैप्रायोगिक रूम पे तुम सत्य को खोजोजंगल मे खोजो, मन्दिर मे खोजो...जहाँ मन वहां खोजोबद्ध भी खोजे थे जंगल मेजंगल मे ऐसा क्या है? की सारे ब्रह्मज्ञानी जंगल भाग गएसत्य का जंगल से कुछ भी लेना देना नही हैअगर जंगल जाने से ही सत्य मिले तो फिर जंगल ही सत्य हैसत्य राजमहलों मे भी मिल सकता थाअगर पात्रता है तो राजमहलों मे भी मिलेगातो फिर बुद्ध जंगल क्यों भाग गए ? वो वही जाने

पर अति पारमार्थिक ज्ञान यही कहता है की खूजने की जरुरत नही हैपर इसे तुम सैद्धान्ति मत ले लेनासिद्धांत कोई बहोत अच्छी चीज नही हैथोरा बहोत सिद्धांतवादी होना ठीक हैजादा सिद्धांतवादी मत बननानही तो फिर सिद्धांत मे ही फेस रह जाओगेहमें सत्य मिला ही हुआ है यह कोई सिद्धांत नही हैयह तुम्हारी प्रतीति होनी चाहिएआश्चर्य है की हवाओं का एक झोका बहे और हमें ज्ञान मिलेआश्चर्य है की कोयल की गूँज हमारे काने मे गूंजे और और हमें सत्य मिलेआश्चर्य है की हम हरे भरे लहलहाते खेल खलिहानों को देखे और हमें ज्ञान मिलेआश्चर्य है की पक्षियों की चहचहाहट हम सुने दे और हमें ज्ञान ने मिलेएक पत्ता काफ़ी हो सकता है सत्य को पाने के लिएतुम एक पत्ते को सिर्फ़ एक पत्ता मत समझ लेनाउसमे सारा रहस्य छिपा हैवो पत्ता कहाँ से आया? अगर तुम उस पत्ते को भी पकर लो तो वो तुम्हे सत्य तक पहुँचा सकता हैपर इसके ज्ञान चाहिएपरिपक्वा चैतन्य चाहिएजो बुद्ध के पास थाजो जीसस के पास थाहमारे पास नही है यह हमारी मान्यता है, सत्य नही है