Saturday, September 27, 2008

बुद्ध का जीवन

बुद्ध के जीवन ने मुझे बहोत प्रभावित किया है। मुझे डर है की कहीं मैं बौद्ध धर्मं को न अपना लूँ। इतना प्रभावित किया है। सबसे बरी बात जिससे मैं प्रभावित हुआ वो यह है - बुद्ध थे तो राजकुमार। और वो भीख मांग के जीवन यापन करते थे। आश्चर्य है। की एक राजकुमार भीख मांगे। कपिलवस्तु की गलिओं मे भीख मांगता फिरे। सबसे अच्छा जीवन राजकुमारों का होता था। स्वर्णमय जीवन होता था उनका। राजा से भी अच्छा। राजकुमार मनुष्य जाती की पराकाष्टा हुआ करती थी, ऐश्वर्य के मामले मे। उनसे जादा ऐश्वर्य मनुष्य जाती की इतिहास मे किसी को नही मिला और आगे भी नही मिलेगा। तो बुद्ध जब सिद्धार्थ थे तो उनके पास जीवन का सारा ऐश्वर्य था। जितना ऐश्वर्य हो सकता था, था। ऐसा होता है, अगर तुम्हे अनंत ऐश्वर्य मिले जाए तो वो भी कुछ समाया के बाद एक कांटे जासी हो जाती है। तो फिर मन यह सोचने लगता है की ऐश्वर्य के बाद क्या है? तो बुद्ध (सिद्धार्थ) यही सोचे। ऐश्वर्य तो था ही उनके पास। काफ़ी ऐश्वर्य था। इतना जादा था की आज हम भी उतना ऐश्वर्य प्राप्त नही कर सकते। बुद्ध जब सिद्धार्थ थे तो उनको भी धीरे धीरे पता लगने लगा की इस ऐश्वर्य मे कुछ भी नही रखा है। क्षणिक है यह ऐश्वर्य। आज है, कल नही रहेगा। बस बात ख़तम हो गई। इस बात को समझने के लिए प्रगाढ़ चैतन्य चाहिए। नही तो जन्म-जन्मान्तर मे भी कहाँ समझ मे आता है। जब जब मनुष्य जाती ऐश्वर्य की चरम सीमा पर होगी तब तब वो सत्य का दरवाजा खात्खातायेगा। इसलिए राजकुमारों को खूब सत्य मिला। बहोत सारे राजकुमार ब्रह्मज्ञानी हो गए। महावीर भी राजकुमार थे, ब्रह्मज्ञानी हो गए। तुम जीसस की बात न मानो थो थोरा तार्किक है क्योंकि, तुम तर्क दे सकते हो की जीसस तो ख़ुद गरीब था, बकरी चराता था तो दूसरों को भी गरीब करना चाहता था। तो हम उसकी बात नही मानेगे। काफ़ी अच्छा तर्क है ये। पर, तर्क तर्क होता है। तर्क के माध्यम से सत्य कभी नही मिला है और नही मिलेगा। हालाँकि इस तर्क का भी काट है मेरे पास, पर फिर तर्क पर तर्क हो जाएगा। और इस बीच सत्य खो जाएगा। अगर तुम तर्कवादी ही हो तो तुम बुद्ध के जीवन मे कोई भी तर्क नही लगा पाओगे। जीसस के जीवन मे थोरा बहुत तर्क लगाने जी जगह है। तुम जीसस के जीवन मे थोरा बहोत तर्क लगा सकते हो। पर बुद्ध और महावीर के जीवन मे तर्क लगाने की थोरी भी जगह नही है। क्योंकि दोनों ही राजकुमार थे। दोनों ने ही ऐश्वर्य की चरम सीमा को देखा था और पाया की यह कुछ भी नही है। इसलिए वे सत्य की तरफ़ अग्रसर हुए। जीसस की बात थोरी अलग है। और शायद बुद्ध और महावीर के जीवन से भी जादा प्रगाढ़ है। क्योंकि जीसस गरीब था। गरीबों की तृष्णा जादा होती है। उनकी अकन्षाएं असीम होती है। उन्हें अभी ऐश्वर्य को पाना है। सत्य से उनका अभी कोई लेना देना नही है। जीसस के पास ऐश्वर्य नही था पर वो फिर भी समझे गए की ऐश्वय कुछ भी नही है। ऐश्वर्य न रहते हुए भी समझ गए। थोरा कठिन हैं। बुद्ध के पास था, तब वो समझे थे। जीसस के पास नही था, फिर वो समझ गए जो थोरा कठिन है। इस मामले मे जीसस की प्रगाढ़ता जादा है। मैं कोई तुलना नही कर रहा हूँ। बस मैं अपना दृष्टिकोण व्यक्त कर रहा हूँ।

3 comments:

रेवा स्मृति (Rewa) said...

Buddh ke dharti per aaj sab dukhi kyun hein?

Shubh said...

Thora sa gyan chahiye. Nahi to jeevan bahot hi dukhmaya hai. Dukh bhi maanyata ka hai. Hamne pragadhta se maan liya hai ki dukh hai. Maanyata chhor do sab thik ho jayega.

Unknown said...

Budh ke dharti per aaj sab dukhi kyun hein?
The question raised by Rewa Smiriti is very authentic.
If you look around you and within yourself people has worn DUKH as an ornament. One day Buddha asked his Sanyasis to find out the person who wants MAUKSH and no body was available to get MAUKSH due to one reason or the other. We are the next next next ..... genration of those people.
Buddha said there is DUKH and there is way to get out from it but who is willing for that? One has to take a quantum leap for this.
Apart from the above, we Indian are veryclever and making fool to our own brothren by this way or that. That is why we are in great trouble.