Monday, May 26, 2008

Kavita

आजकल इंटरनेट की दुनिया मे कविताओं की होड़ लगी है। जिसे देखो वो कविता लिख रहा है। अपने ब्लॉग पे किवता दाल रहा है। आख़िर क्या है इस कविता मे। मैं कविताओं का भी बहुत बरा प्रेमी नही रहा। मुझे एक - आध कविता है। मुझे याद है जे शंकर प्रसाद की वो कविता जो मेट्रिक मे पढ़ना था।
हिमादरी तुंग श्रृंग से
प्रबुद्ध शुद्ध भारती
स्वयंप्रभा समुज्ज्वला
स्वतंत्रता पुकारती।
बस इतना ही याद है। इस से जादा याद नही है। याद होने की जरुरत भी नही है। इतना ही काफ़ी है। अगर तुम इतने मे भी न समझे टू कभी न समझोगे। कविताओं मे कवि/कवयित्री अपने मन की अभिव्यक्ति टू प्रकट करते हीं। उनके मन जो होता है वो शब्द मे ढाल देते हैं। अतः कविता मन की तरेंगे हैं। कविता उन महासागरों के तल पर चलते उस छोटे छोटे नाओ की तरह है। जो मन रूपी लहरों की अभिव्यक्ति है। टू तूम्हारे मन मे जो है उसे तुम शब्द मे अवियक्त करने की कोशिश करो। पर इतना ध्यान रखना की हर एक वाक्य का अन्तिम शाब्द श्रुतिसम हो। अर्थात हर एक वाक्य का अन्तिम शब्द सुनने मे समान हो। तभी कविता बंदी है। अगर हर एक वाक्य का अन्तिम शब्द समान न हो टू फिर टू वो गद्य हो गया। फिर पद्य कहाँ रहा हो। यहइ टू कवि लोग दिन रात करते हैं। अन्तिम शब्द जादा महत्वपूर्ण है। कविता लिखते समाया अगर अन्तिम शब्द थिक से न बैठ रहा हो टू वो थोरा बहुत भावार्थ को बदल भी सकते हैं। कविताओं मे सत्य की उतनी चिंता नही होती है जितना की रस, अलंकार और छंद की होती है। अलंकार बलाघात थिक होना चाहिए।सत्य अगर थोरा बहोत इधर उधर हो जाये लेकिन अलंकार - बलाघात बन जाए टू कवि वो कर लेते हैं। यह हुआ पहली बात।
दूसरी बात यह है। की कविता बहुअर्थी होती है। एक ही कविता ke दो अर्थ हो सकते हैं। पढने वाले पर निर्भर करता है। जैसे मन लो किसी ने पार मोहब्बत पे कविता लिखा। टू पढने वाले ने सोचा की ये प्यार मोहब्बत इंसान की है। लेकिन कवि न कविता किसी बिल्ली लिखी थी। लेकिन उस पूरे कविता मे न टू बिल्ली का नाम है न किसी इंसान का नाम है। अब तुम ख़ुद सोचो की कविता किसके बारे मे लिखी गई है। तुम विचलित हो जाओगे। तुम ग़लत अर्थ भी ले सकते हो कविता का। क्योंकि कविता मूलतः बहुअर्थी होती है। इसलिए मain कविताओं के बहोत बरा प्रेमी नही हूँ। कविताओं मे सत्य की उतनी जगह नही है जितनी की काव्यात्मक अलंकारों की है। इसलिए कवितोंओं के माध्यम से सत्य को प्रकट करना थोरा मुश्किल है। किसी ने नही किया आजतक। इसलिए टू समाज ने गद्य को चुना। सारी सूचनाएँ टू गद्य मे होती हैं। हमारी बोल चाल की भाषा भी गद्य है। जद्य एकअर्थी होता है। उसका एक ही अर्थ होता है। उसमे लाप लपेट नही होता है। कवितों को बहोत लपेट के लिखा जाता है। छुपा के लिखा जाता है। सत्य को छुपा के लिखा जाता है। सत्य के इर्द गिर्द लिखा जाता है। और सत्य क्या है वो तुमपर जानने के लिए छोर दिया जाता है। फिर तुम अपने मन से जो समझना है समझो।
ये कोई जरुरी नही है की तुम्हारी जो अभिव्यक्ति है उसे तुम शब्द मे ढालो। वो अभिवयक्ति ही क्या जो शब्द मे ढल जाए। वो अभीइव्यक्ति तुम्हारी है। तुम उसे अपने पास ही रखो। दूसरों को भी मौका दो उन्हें अपनी अविव्यक्ति खोजने का। कविता को पढ़ के कवि मत बनो। अपनी अंतरात्मा मे झांको और देखो की वहाँ क्या हो रहा है। वहाँ शब्द के लिए कोई जगह नही है। रत्ती भर भी जगह नही है की वहाँ शब्द ठहरे। बुद्ध एक भी कविता नही लिखे। अगर कविता ह्रदय की ही अभिवयक्ति है टू फिर बुद्ध और महावीर और जीसस से अच्छा कोई नही लिख सकता। कुछ दिन पहले मैंने एक लेखक की कविताओं की संकलन की कुछ प्रति मंगवाई थी। उसमे कुछ कविता टू वस्तुतः ह्रदय से लिखी गई थी। पर कुछ कविताएँ मान्सिक तल से लिखीं गईं थी। कभी कभी ऐसा हो जाता है। मान्सिक बुद्धि ह्रदय के जैसा लिख सकता है। अधिकांश कवितायें मन के तल से लिखी जाती हैं। जबकि कविताओं की ह्रदय से लिखा जाना चाहिए।

4 comments:

रेवा स्मृति (Rewa) said...

Hmmm....1st of all let me complete the poem which you have left in half...

Title- हिमाद्रि तुंग शृंग से
हिमाद्रि तुंग शृंग से

प्रबुद्ध शुद्ध भारती

स्वयंप्रभा समुज्ज्वाला

स्वतंत्रता पुकारती

'अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ- प्रतिज्ञ सोच लो,

प्रशस्त पुण्य पथ है, बढ़े चलो, बढ़े चलो!'




असंख्य कीर्ति-रश्मियाँ

विकीर्ण दिव्य दाह-सी

सपूत मातृभूमि के-

रुको न शूर साहसी !

अराति सैन्य सिंधु में ,सुबाड़वाग्नि से चलो,

प्रवीर हो जयी बनो - बढ़े चलो, बढ़े चलो !

रेवा स्मृति (Rewa) said...

And I still remember whole poem...:-)

You can find more poem here on this link.
http://rspandit.wordpress.com/

Shubh said...

Thanks for completing it rewa ji.

रेवा स्मृति (Rewa) said...

You know, I can not forget this poem bcoz I had a senior di in school and her name was 'स्वयंप्रभा'. We both were in same hostel and didi jab bhi gssati thee to Aur unhe chidhane ke liye main yeh poem bolti thee. Aur di khush ho jati thee :-)