Wednesday, October 15, 2008

ज्ञान

हमने बहोत सारे ज्ञान खो दिए हैं। समय के गर्त मे खो गया। अब स्थिति ऐसी हो गई है की हमने अज्ञानता को ही ज्ञान मान लिया। और काफ़ी प्रगाढ़ता से माना है। लेकिन पूर्ण प्रगाढ़ता से नही माना है। मेरा मानना है की अगर अज्ञान को भी पूर्ण प्रगाढ़ता से मान लिया जाए तो वह ज्ञान हो जाता है। अज्ञान- को ज्ञान मानकर ज्ञान को भुला दिया| सारा अज्ञान अपूर्णता से उत्त्पन्न होता है। पूर्णता मे अज्ञान कहाँ? पूर्ण, पूर्ण है उसमे अज्ञान की जगह कहाँ? पूर्ण से ही अद्वैत का बोध होता है। अपूर्णता ने तो हमेश द्वैत पैदा किया है। हमें द्वैत दिखाई देता है, अद्वैत दिखाई नही देता। हमने हमेशा से दो देखा है, एक का हमें कुछ भी नही पता। एक को हमने समय की गर्त मे भुला दिया। हमें सीमा दिखाई परती है, असीम हमें दिखाई नही परता। हमें सूरज और चाँद दिखाई परते हैं, उस सूरज और चाँद के बीच जो विराट आकाश है वो हमें दिखाई नही परता। उस आकाश के चलते ही सूरज, चाँद और तारों का अस्तित्व है। अगर आकाश हो तो ये सारे, सूरज, चाँद खो जायेंगे। अब भी ब्रह्म का काफ़ी हिस्सा व्यक्त नही हुआ है। अभी भी आकाश ही आकाश है। एक परमाणु की अन्दर भी ९९% से जादा हिस्सा मे सिर्फ़ खाली आकाश होता है। हमारे घर के अन्दर भी जादातर स्थान खालि होता है। सूर्य और पृथ्वी के बीच १५ करोर किलोमीटर का खाली आकाश है। मेरे अनुसार अभी भी पूर्ण ब्रह्म के % हिस्सा भी व्यक्त नही हुआ है। अगर होता, तो सिर्फ़ पदार्थ ही पदार्थ होता। इतना खाली आकाश होता। पदार्थ ब्रह्म का काफ़ी संघनित रूप है। इसलिए अगर आकाश पे ध्यान किया जाए तो वह काफ़ी प्रभावशाली होगा। हमने ब्रह्म को की माध्यम से जाना है। ब्रह्म का सबसे निकटतम प्रतिनिधि है। और शायद आकाश से भी सूक्ष्म है। हम हिन्दुओं ने की अपरम्पार महिमा गाई है। सारे वेद मंत्र से ही शुरू होते हैं। और फिर कलयुग मे मंत्र योग का ही प्रावधान है| इसलिए मंत्र का जाप कलयुग मे कल्याणकारी सिद्ध होगा। कलयुग मे हठयोग , ज्ञानयोग, राजयोग थोरा मुश्किल है।

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