Tuesday, November 4, 2008

सत्य आनंद और प्रेम

हम सभी आनंद प्राप्त करना चाहते हैंआनंद प्राप्त करने का मार्ग कुछ भी होहमारा उद्देश्य आनंद प्राप्त करना हैप्रेम के सहारे से हम आनंद प्राप्त करते हैंविवाह का ईजाद भी आनंद प्राप्त करने के लिए किया गया थाअगर विवाह मे आनंद हो तो कोई विवाह नही करेगावस्तुतः आनंद एक मे हैअद्वैत मे ही आनंद हो सकता हैद्वैत ने तो हमेशा से हमें उलझनों मे डाला हैद्वैत मे आनंद की कोई भी सम्भावना नही हैएक होना हमारी गहनतम आकांक्षा हैहम एक होना चाहते हैक्योंकि आनंद एक मे ही हैहम ख़ुद से एक नही हो पाते तो दूसरे से मिलके एक होना चाहते हैंप्रेम मे वोही होता हैप्रेमी और प्रेमिका एक होने की कोशिश करते हैं प्रेम अद्वैत की तरफ की यात्रा हैप्रेम की काफ़ी गहराई मे अद्वैत ही बचाता हैयही है प्रेम का वास्तविक सिद्धांततो विवाह जो प्रेम का की एक अंग है, उसमे पति पत्नी को अद्वैत की तरफ़ अग्रसर होने की प्रेरणा देती हैहम ख़ुद से एक नही हो पाते, तो प्रेम के माध्यम से एक होना चाहते हैंजो लोग ख़ुद से एक हो जायें उन्हें फिर विवाह की जरुरत नही हैजैसे की विवेकानंदउन्होंने विवाह नही किया क्योंकि वो अद्वैत की स्थिति मे थे ही

2 comments:

रेवा स्मृति (Rewa) said...

Well said! This is an ultimate truth.

Unknown said...

hila diya mishra ji ne! from muzaffarpur to kharagpur to banglore.dekh na kahi banglore main earth quake na aa jaye.