Wednesday, May 14, 2008

सत्य

सत्य कैसे मिलेगा? सत्य की स्थिति उस मृग की भांति है जो वन वन भटकता फिरता है उस कस्तूरी के चक्कर मे। और कस्तूरी उसके नाभि मे होती है थिक इसी प्रकार की स्थिति है हमारे साथ भी। हम कहाँ कहाँ सत्य को नही खोजते। कभी मंदिअर कभी चर्च फिर भी कहाँ मिलता है सत्य सत्य तुम्हारे अन्दर है मिलेगा? छूटा कब जो मिलेगा। सत्य टू हमेश से था। उसके छोटने के बात ही ग़लत है। तुम्हारे पंडित पुरोहितों ने यही टू सिखाया की सत्य खो गया है उसे फिर से खोजना होगा। वास्तव मे खोया कभी नही था। खोता टू तब है जब तुम अपनी किताबी बुद्धि का इस्तेमाल करते हो। जब तुम, तुम्हारे और सत्य के बीच मे आ जाते हो। तुम्हारी ही अभिव्यक्ति सत्य को अभिव्यक्त नही होने देती। अगर तुम देखो टू सत्य का प्रवाह हमेशा से है ऐसा एक क्षण न था जब सत्य न था तुम न थे, पर सत्य था तुम न रहोगे, पर सत्य रहेगा थोरा उस दिन के बार मे सोचो जब तुम्हे सब कुछ छोरना परेगा उस दिन टू सब छूट जाता है सब माँ बाप, भाई, बहन, सगे सम्बन्धी सब छूट जाते हैं। कुछ भी टू नही बचता तुम रत्ती भर भी नही बचा पाते। तुम ख़ुद ही छूट हो। उस दिन तुमने जितने पोथी पुस्तक पढे वो सारे ज्ञान मिटटी मे मिल जायेंगे। तुम्हारे वही ज्ञान जिसपर तुम्हे इतना गर्व हुआ करता था उस दिन वो कोई काम ना आएगा। उस दिन तुम्हे सारे किताबी ज्ञान को छोरना होगा। वो ज्ञान अब तुम्हारे मशित्श से हटकर वो मिटटी मे मिल जाएगा। मिटटी भर से जादा मोल नही है तुम्हारे किताबी ज्ञान का। अगर कोई किताब तुम्हे आत्मा तक न ले जाए टू समझ लेना वो किताब तुम्हारा शत्रु है। वो किताब राख से जादा कुछ भी नही है। वहाँ सिर्फ़ काले अक्षरों मे शब्द छापा हुआ है। थोरी बहोत सूचनाएँ है उसे किताब मे। इसलिए टू किताब पढने से समाधि नही लगती। आनंद की वर्षा नही होती। तुमpar ऊपर ऊपर किताबी ज्ञान की परत बढ़ती जाती है और तुम अन्दर ही अन्दर खोखले होते चले जाते है। पर हो सकता है - की तुम्हे किसी भी किताब मे सत्य के दर्शन हो जायें। पर उसके लिए परिपक्व चैतन्य चाहिए। लओत्सो जैसा चैतन्य चाहिए। एक पत्ता काफी है सत्य को जानने के लिए। जैसा की लओतोसो को huaa। तुम एक पत्ता को साधारण पत्ता मत समझो। उस पत्ते मे सारा सार छिपा है। पत्ता टू बस ek माध्यम है। माध्यम कुछ bhi होहै। एक फूल तुम्हे सत्य का दर्शन कर सकता है। वो फूल फूल की क्या जो सत्य से न मिला दे। इसलिए मैंने कहा था - जो तुम कर रहे हो उसके प्रति तुम थोरे भी साक्षी रहो to सत्य के दर्शन हो सकते hain.

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