अगर हमें बुद्धत्व न मिले तो ये समझाना की सारा जीवन व्यर्थ हुआ। हमने बहोत काम किया और अगर आत्मज्ञान न मिले तो फिर सारा जीवन व्यर्थ है। मिलने की बात तो तब जब हमने ये मान लिया की हमने सत्य को खो दिया है। ऐसा हो सकता है की हमने सत्य को कभी खोया ही न हो और बेकार मे ढूंढ रहे हों। ये ज्ञान की बात है। प्रायोगिक रूम पे तुम सत्य को खोजो। जंगल मे खोजो, मन्दिर मे खोजो...जहाँ मन वहां खोजो। बद्ध भी खोजे थे जंगल मे। जंगल मे ऐसा क्या है? की सारे ब्रह्मज्ञानी जंगल भाग गए। सत्य का जंगल से कुछ भी लेना देना नही है। अगर जंगल जाने से ही सत्य मिले तो फिर जंगल ही सत्य है। सत्य राजमहलों मे भी मिल सकता था। अगर पात्रता है तो राजमहलों मे भी मिलेगा। तो फिर बुद्ध जंगल क्यों भाग गए ? वो वही जाने।
पर अति पारमार्थिक ज्ञान यही कहता है की खूजने की जरुरत नही है। पर इसे तुम सैद्धान्तिकअ मत ले लेना। सिद्धांत कोई बहोत अच्छी चीज नही है। थोरा बहोत सिद्धांतवादी होना ठीक है। जादा सिद्धांतवादी मत बनना। नही तो फिर सिद्धांत मे ही फेस रह जाओगे। हमें सत्य मिला ही हुआ है यह कोई सिद्धांत नही है। यह तुम्हारी प्रतीति होनी चाहिए। आश्चर्य है की हवाओं का एक झोका बहे और हमें ज्ञान न मिले । आश्चर्य है की कोयल की गूँज हमारे काने मे गूंजे और और हमें सत्य न मिले। आश्चर्य है की हम हरे भरे लहलहाते खेल खलिहानों को देखे और हमें ज्ञान न मिले। आश्चर्य है की पक्षियों की चहचहाहट हम सुने दे और हमें ज्ञान ने मिले। एक पत्ता काफ़ी हो सकता है सत्य को पाने के लिए। तुम एक पत्ते को सिर्फ़ एक पत्ता मत समझ लेना। उसमे सारा रहस्य छिपा है। वो पत्ता कहाँ से आया? अगर तुम उस पत्ते को भी पकर लो तो वो तुम्हे सत्य तक पहुँचा सकता है। पर इसके ज्ञान चाहिए। परिपक्वा चैतन्य चाहिए। जो बुद्ध के पास था। जो जीसस के पास था। हमारे पास नही है यह हमारी मान्यता है, सत्य नही है।
पर अति पारमार्थिक ज्ञान यही कहता है की खूजने की जरुरत नही है। पर इसे तुम सैद्धान्तिकअ मत ले लेना। सिद्धांत कोई बहोत अच्छी चीज नही है। थोरा बहोत सिद्धांतवादी होना ठीक है। जादा सिद्धांतवादी मत बनना। नही तो फिर सिद्धांत मे ही फेस रह जाओगे। हमें सत्य मिला ही हुआ है यह कोई सिद्धांत नही है। यह तुम्हारी प्रतीति होनी चाहिए। आश्चर्य है की हवाओं का एक झोका बहे और हमें ज्ञान न मिले । आश्चर्य है की कोयल की गूँज हमारे काने मे गूंजे और और हमें सत्य न मिले। आश्चर्य है की हम हरे भरे लहलहाते खेल खलिहानों को देखे और हमें ज्ञान न मिले। आश्चर्य है की पक्षियों की चहचहाहट हम सुने दे और हमें ज्ञान ने मिले। एक पत्ता काफ़ी हो सकता है सत्य को पाने के लिए। तुम एक पत्ते को सिर्फ़ एक पत्ता मत समझ लेना। उसमे सारा रहस्य छिपा है। वो पत्ता कहाँ से आया? अगर तुम उस पत्ते को भी पकर लो तो वो तुम्हे सत्य तक पहुँचा सकता है। पर इसके ज्ञान चाहिए। परिपक्वा चैतन्य चाहिए। जो बुद्ध के पास था। जो जीसस के पास था। हमारे पास नही है यह हमारी मान्यता है, सत्य नही है।
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